The Arts

पुलवामा : चुभती यादें

By Renjini Nair
 | 27 Nov 2020

दर्द से चीखी माँ उस दिन खोकर अपने सुपुत्रों को 

देखकर पुलवामा पर दुश्मन की बर्बरता  को 

किसी का बेटा, भाई, बाबा, मिटा किसी का सिन्दूर 

कायरों ने उस दिन माँ के सीने पर मारी थी खंजर

वीर! उस दिन तूने जब भेजा था प्यार का तोहफा या इज़हार 

अपने प्यारों से दुबारा मिलना हो पाएगा तुझे था क्या खबर!

वतनवालों! वतन की लाज बचा लेना 

रक्त बहे उन वर्दियों का तुम लाज रख लेना

क़सम तुम्हें वतन की, उन्हें इन्साफ दिला देना 

हरीफ़ों पर तुम तेज़ाब बनकर बरस पड़ना

आतंकियों, गद्दारों गीदड़ों का तुम काल बन जाना

मुश्किल बन कर सैलाब बनकर  तू उनपर  छा जाना 

आँखों में शोला और दिल में अंगार ले चलना 

अपनी खून से वतन की माँग तुम सजाना

मौत एक ही बार आएगी डरना क्या है!

चार दिन की ज़िन्दगी है इसे बड़ा समझना क्या है!

वीर! तेरी ये कुर्बानी अधूरी जाएगी 

हर कण तेरी याद में पुलकित हो जाएगी 

हस्ती तेरी क्या ख़ाक मिटा पाएगा

तू मरेगा नहीं अमर बन जाएगा

ये देख! आसमान तेरी याद में रो रहा है

वतन का हर कण तुझे सलामी दे रहा है

किसी ने ठीक ही कहा है

शहीद जाते हैं जन्नत, घर नहीं आते हैं 

यह बात आज सारी दुनिया समझ रही है 

शहीद वह है जो अपनी खून की नदियाँ बहाता है

देश की खातिर तेरी शहादत अनमोल होता है  

देश का मान है, सरहद पर बहा दी खून 

मरने के बाद भी जिनके नाम में है जान

चैन से सो रहा है मुल्क, जाबाज़ थे वे वतन की शान 

अपनी खून से इस ज़मीन को सींचा, उनको है नमन ll

About the author

Ms. Renjini Nair is a school teacher engaging with young minds of India. During her leisure she likes to pursue her hobbies and has pen down a poem based on the war times. All views expressed in the poem are personal

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