Research & Policy

ऑनलाइन शिक्षा के क्षेत्र में चुनौतियां

By pradeep negi
 | 21 Nov 2020

पूरा विश्व वर्तमान में कोविड 19 या कोरोना के प्रकोप से त्रस्त है। मानवता त्राहि-त्राहि कर रही है. जीवन के सभी क्षेत्रों में इसके प्रभाव परिलक्षित हो रहे हैं। सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक, आर्थिक, धार्मिक कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है जो कोरोना से प्रभावित न हुआ हो। इस बीच संसार की सारी प्रगति, सारे विकास मानों रुक से गए हैं। शिक्षा जगत भी एक ऐसा क्षेत्र है जहां इसका व्यापक असर देखा जा सकता है। ग़ौरतलब है कि 15 मार्च 2020 से ही देश के लगभग सभी स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालयों को बंद कर दिया गया और आदेश दिया गया कि ऑनलाइन शिक्षा के माध्यम से बाकी बचे कोर्स को पूरा कराया जाये।

इस बीच शिक्षा व्यवस्था में भी काफी बदलाव होते नज़र आ रहे हैं, जिनपर ध्यान देना बेहद जरूरी है. एक तो पहले से ही हमारी शिक्षा व्यवस्था अनेक चुनौतियों से गुज़र रही थी जैसे कि बजट की कम और विश्वविद्यालयों, कॉलेजों और स्कूलों में संसाधनों की कमी, वहीं शोध और नवाचार में भी अंतर्राष्ट्रीय पटल पर हमारी उपस्थिति कमजोर है, इसका अर्थ यह नहीं कि हमारे यहां मेधा की कमी है पर कहीं न कहीं संसाधन की कमी आड़े आ जाते हैं।  2020 की शुरुआत में कोविड-19 के प्रसार के डर से प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक की सभी शैक्षिक संस्थाओं को अचानक बंद कर देना पड़ा. वार्षिक परीक्षाएं कहीं पर भी पूर्ण नहीं करवाई जा सकीं। पाठ्यक्रम को पूरा करवाना और परीक्षा आयोजित करवाना अभी निकट भविष्य में संभव नहीं दिखता। पिछला सत्र तो बीत गया लेकिन नए सत्र पर भी अनिश्चितता के बादल मंडरा रहे हैं। ऐसे में पारंपरिक ढांचे के इतर एक अन्य व्यवस्था पर शिक्षाविद विचार विमर्श कर रहे हैं और वह है- ऑनलाइन शिक्षा।  ऑनलाइन शिक्षा के विभिन्न रूप हैं, जिसमें वेब आधारित लर्निंग, मोबाइल आधारित लर्निंग या कंप्यूटर आधारित लर्निंग और वर्चुअल क्लासरूम इत्यादि शामिल हैं।

ऑनलाइन अध्यापन की चुनौतियां

ऑनलाइन शिक्षण का विचार कोई नया नहीं है और दूरस्थ शिक्षा के क्षेत्र में भारत में इसका प्रयोग पहले से चल भी रहा है। तकनीकी शिक्षा के संस्थानों में भी इस विधा से शिक्षण कार्य होता आया है, लेकिन वृहद रूप से देखा जाए तो अभी हमारे शिक्षण संस्थानों में इसका चलन ना के बराबर है, लेकिन नई शिक्षा नीति इसके समाधान के रास्ते खोल सकती है। आंकड़ों पर दृष्टि डालते हुए और पिछले कुछ महीनों में प्रदान किए जाने वाले ऑनलाइन शिक्षण को व्यावहारिकता के धरातल पर देखें तो जो तस्वीर उभर कर आई है वह यह है कि हमारे देश में ऑनलाइन शिक्षा प्रदान करने के रास्ते में अनेक व्यावहारिक बाधाएं आई हैं जैसे सभी शिक्षकों और विद्यार्थियों के पास स्मार्ट फोन/कंप्यूटर/लैपटॉप की सुविधा न होना, इंटरनेट, ब्रॉडबैंड का सुचारू रूप से उपलब्ध ना होना, ऑनलाइन शैक्षिक टूल्स की जानकारी न होना, पुस्तकालयों का डिजिटल न होना, ई-कंटेंट का उपलब्ध न होना आदि।

ग्रामीण और दूर दराज के अंचलों में रहने वाले विद्यार्थियों से संपर्क स्थापित करना और ऑनलाइन शिक्षण से उनका पाठ्यक्रम पूरा करना भी एक बड़ी समस्या है, यह जरूर संभव है कि विद्यार्थियों और शिक्षकों की संख्या का कुछ प्रतिशत समय की मांग को देखते हुए भविष्य में कंप्यूटर/लैपटॉप इत्यादि संसाधन खरीद भी ले क्योंकि स्मार्ट मोबाईल फोन के ही द्वारा पूरी पढ़ाई करना सरल नहीं है, लेकिन एक बड़ी समस्या उन विद्यार्थियों की है जो निर्बल और अति निर्बल वर्ग से आते हैं. उनके अभिभावकों के लिए उनकी फीस भर पाना ही किसी चुनौती से कम नहीं ऐसे में महंगे उपकरण खरीद पाना सबके सामर्थ्य की बात नहीं।

आज शिक्षा विभाग द्वारा यह कहा जा रहा है की अध्यापक द्वारा शिक्षा प्रदान करने में इनफार्मेशन तकनीक के साधनों का प्रयोग किया जा रहा है लेकिन वास्तविकता तो यह है कि संस्थागत स्तर पर स्मार्ट क्लास, ई–बोर्ड इत्यादि के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। अध्यापकों को ई-कंटेंट तैयार करने का भी कोई जादा अनुभव या प्रशिक्षण नहीं है। ई-कंटेंट का तात्पर्य लोकप्रिय पाठ्यपुस्तकों और संदर्भ ग्रंथों की छाया प्रति करवा कर विद्यार्थियों में वितरित करना नहीं है. ऐसे में कॉपीराइट के बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए यह आवश्यक है कि मौलिक दृश्य और श्रव्य ई-कंटेंट विकसित करने में अध्यापकों को उचित प्रशिक्षण और प्रोत्साहन दिया जाए, उन्हें तकनीकी रूप से नई शिक्षण विधियां और डिजिटल माध्यमों का उपयोग करना सिखाया जाए जो प्रत्यक्ष शिक्षा में भी बहुत सहयोगी होगा।

नई शिक्षा नीति में ऑनलाइन शिक्षा पर ज़ोर

ऑनलाइन शिक्षा प्रदान करना अब भारत के स्कूलों तथा विश्वविद्यालयों के लिए समय की आवश्यकता बन चुका है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अंतर्गत नई शिक्षा नीति का मसौदा तैयार करने के लिए एम कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में जो समिति बनाई गई थी उसने दिसम्बर 2018 में अपनी रिपोर्ट मंत्रालय में सौंप दी थी। कस्तूरीरंगन रिपोर्ट के अनेक सुझावों को स्वीकार करते हुए नई शिक्षा नीति में मैसिव ओपन ऑनलाइन कोर्सेस (मूक्स) की उपयोगिता को स्वीकार किया गया है और विश्वविद्यालयों को अनेक सुझाव देते हुए यह भी कहा गया है कि वे शिक्षण के पारंपरिक माध्यमों के अलावा अनेक ऑनलाइन पाठ्यक्रम भी प्रारंभ करें। नई शिक्षा नीति में ऑनलाइन शिक्षण का समावेश मिश्रित टीचिंग–लर्निंग की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा।

पिछले दशक में मिश्रित टीचिंग-लर्निंग की अवधारणा को विश्व के अधिकांश विश्वविद्यालयों ने अपनाया है। इस तकनीक में प्रत्यक्ष शिक्षण के साथ ही ऑनलाइन पाठ्यक्रम भी चलाए जाते हैं। मिश्रित व्यवस्था के अनेक फायदे हैं तो कुछ नुकसान भी. वास्तव में कोई भी तकनीक सौ प्रतिशत सही नहीं हो सकती. लेकिन सबसे अच्छी बात ये है कि इससे फीस पर होने वाला व्यय कम किया जा सकता है और विद्यार्थियों का एनरोलमेंट बढ़ाया जा सकता है। नई शिक्षा नीति में ऑनलाइन शिक्षण के लिए विश्वविद्यालयों को आवश्यक संसाधन मुहैया करने की बात भी कही गई है जिसमें डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर से लेकर फैकल्टी के लिए कपैसिटी डेवलपमेंट प्रोग्राम विकसित करना भी है। इसके अनुसार विषय विशेषज्ञों को डिजिटल कंटेंट तैयार करने और उसको उचित प्लेटफॉर्म पर अपलोड करने के लिए प्रशिक्षण दिए जाएंगे. लेकिन आने वाले समय में पाठ्यक्रम का स्वरूप क्या हो, उसका कितना भाग प्रत्यक्ष हो, कितना ऑनलाइन हो, ऑनलाइन परीक्षाएं किस प्रकार आयोजित हों इत्यादि मुद्दों पर भी शिक्षा मंत्रालय द्वारा स्पष्ट दिशानिर्देश अतिशीघ्र लागू किए जाने की आवश्यकता है।

ऑनलाइन शिक्षण के दायरे को बढ़ाने की जरूरत

ऑनलाइन शिक्षण के इस पूरे विमर्श में महाविद्यालयों को दायरे में लाने के लिए गंभीर प्रयास किए जाएं जो विद्यार्थियों की एक बड़ी संख्या को शिक्षा प्रदान करने में संलग्न हैं। विशेष तौर पर ग्रामीण परिवेश में जैसा कि ऐश द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों में दर्शाया भी गया है, आवश्यकता है वित्तविहीन संस्थानों को सरकारी सहायता या अनुदान देने की ताकि वे भी ऑनलाइन शिक्षण में सहभागी बन सकें, यदि ऐसा नहीं किया गया तो साधन सम्पन्न निजी संस्थान तो अपनी अवसंरचना को मजबूत कर लेंगे लेकिन कमजोर संस्थान पीछे रह जाएंगे। अभी शिक्षाविदों को एक आशंका है कि नई शिक्षा नीति प्रतियोगिता को बढ़ावा देगी जिसमें छोटे विश्वविद्यालयों और राज्य स्तर के शिक्षण संस्थानों को बड़ी संस्थाओं से मुकाबला करना पड़ेगा, हमारे देश की कुछ नामचीन संस्थाओं को छोड़ दें तो इन परिस्थितियों में वृहत्तर भारत के विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों में ऑनलाइन अध्ययन-अध्यापन के लिए व्यापक स्तर पर प्रबंध की आवश्यकता है। इसमें समय भी लगेगा और व्यय भी होगा पर एक बार जब हम संसाधन विकसित कर लेंगे तो इसका लाभ लंबे समय तक परिलक्षित होगा. ऐसा करके हम एक चुनौती को स्वर्णिम अवसर में बदल सकते हैं। अभी भारत में ई-शिक्षा अपने शैशवावस्था में है या वो कौन—कौन सी चुनौतियां हैं जिससे शिक्षक और विद्यार्थी दोनों प्रभावित हैं? क्या स्कूली शिक्षा से जुड़े करीब 25 करोड़ और उच्च शिक्षा से जुड़े करीब आठ करोड़ विद्यार्थी ऑनलाइन शिक्षा से जुड़ पा रहे हैं? हालांकि देश के शिक्षा जगत ने समस्या को अवसर में बदलने के लिए भरसक प्रयास किए हैं परंतु वो नाकाफी से नज़र आ रहे हैं।

भारत में आनलाइन शिक्षा के समाने बहुत सारी चुनौतियां मूंहबाये खड़ी हैं। कई ई-लर्निंग मंच एक ही विषय पर कई पाठ्यक्रम प्रदान करते हैं। इसलिए, विभिन्न ई-लर्निंग प्लेटफार्मों में पाठ्यक्रमों की गुणवत्ता भिन्न हो सकती है। तकनीक का असमय फेल होना जैसे इंटरनेट की स्पीड, कनेक्टिविटी की समस्या आदि अनेकों नई प्रकार की चुनौतियां शिक्षा समुदाय के समक्ष हैं अधिकांशत: आज सभी स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय जो ऑनलाइन शिक्षण चला रहे हैं, वह टाइम टेबल के उसी स्वरूप को अपना रहे हैं जो वह कक्षाओं में चला रहे थे। ऑनलाइन शिक्षण को सामान्यत: रेगुलर कक्षाओं की तरह नहीं चलाया जा सकता। तकनीकी की लत और दुष्प्रभाव अभी वर्तमान में ऑनलाइन कक्षायें सामान्यत: चार से पांच घंटें तक चलाई जा रही हैं। उसके बाद शिक्षार्थी को गृहकार्य के नाम पर एसाइनमेंट और प्रोजेक्ट दिए जा रहे हैं। जिसका औसत यदि देखा जाये तो एक विद्यार्थी और शिक्षक दोनों लगभग आठ से नौ घंटे ऑनलाइन व्यतीत कर रहे हैं। जोकि उनकी मानसिक और शारीरिक स्थिति के लिए घातक है। छोटे बच्चों के लिए और भी अधिक नुकसानदेह है। तकनीकी का बहुतायत उपयोग अवसाद, दुश्चिंता, अकेलापन आदि की समस्यायें भी पैदा करता है। बहरहाल सवाल अब भी वहीं खड़ा है कि क्या ऑनलाइन शिक्षा एक प्रभावी शिक्षा प्रणाली हो सकती है, जो गुरू—शिष्य की आमने सामने पढ़ाई का विकल्प बने? अभी तक तो ऐसा नहीं दिखता। सरकार और शिक्षा जगत के लोग इसको बेहतर बनाने के लिए प्रयासरत हैं, लेकिन भारत जैसे बड़े देश में ऑनलाइन शिक्षा में आने वाली बाधाओं से पार पाना अभी दूर की कौड़ी नज़र आ रहा है। ऑनलाइन शिक्षा के बढ़ाव की भारत में प्रबल संभावनायें हैं, लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं हैं। जब तक चुनौतियों का बेहतर आंकलन नहीं किया जायेगा तब तक अच्छे परिणाम प्राप्त नहीं किए जा सकते। इन समस्याओं से बचने के लिए प्रभावी चिंतन की आवश्यकता है, जिससे इनसे देश के भविष्य को बचाया जा सके।

About the author

श्री प्रदीप नेगी, प्रवक्ता-अर्थशास्त्र, राजकीय इण्टर कालेज भेल हरिद्वार

 

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