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जिस प्रकार मातृभाषा को बोलने के लिए हम परिवारिक माहौल में बिना किसी व्याकरण बंधन के मातृभाषा को सीखते हैं फिर हम विभिन्न या साहित्य का अध्ययन करते हैं जिसमें हम स्वता ही व्याकरण को समझ जाते हैं और इस प्रकार से मातृभाषा से हिंदी एक प्रमाणित आशा हमारे अंदर समाहित हो जाता है ठीक इसी प्रकार से अंग्रेजी भाषा को टूटी फूटी स्तर पर मेरी भी ग्रुप से बोलना प्रारंभ करें और जब हम बाहरी साहित्य के संपर्क में आते हैं क्या आएंगे तो निश्चित रूप से ग्रामर संवत अंग्रेजी भाषा हमारा पहचान बन जाएगा