अक्सर हम कहानियो के माध्यम से पढ़ाते है.. यह ऐसी कहानियाँ होती है जो वास्तविक रूप में कभी हो ही नहीं सकता जैसे शेर बोलता है या पक्षी ने कहा |
लेकिन क्या ऐसी कहानियाँ उचित है ?
ऐसी परिस्थिति में बच्चो के मस्तिष्क में कोई और सवाल आये तो क्या जवाब देंगे क्योंकि ये सब चीज़े तो बोलती ही नहीं है |
मेरा मानना है कि हम कुछ कहानियों से गलत दिशा में जा रहे है....
बच्चे वास्तविकता से अनजान नहीं होते| कहानियाँ बस एक माध्यम है उनकी कला और दृष्टिकोण को सावरने का| शेर और पक्षियों के बोलने से ज़्यादा ज़रूरी यह है कि हम बच्चों तक क्या सन्देश पहुँचा रहे है|
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