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बीते कल का अफसोस – बीते समय में, कई बार जाने अनजाने में कुछ ऐसी ग़लतियाँ हो जाती है जिन पर आपको आज भी अफ़सोस है। ऐसे में, जब भी उन बुरे अनुभवों जैसी स्थिति आपको वर्तमान में दिखाई देती है तो आप भूल जाते हैं कि वो समय बीत चुका है और उससे जुड़ा पछतावा आपको निराश और बेचैन बना देता है। इसलिए उस एक ख़्याल से जुड़े ढ़ेरों नकारात्मक विचार आपके दिमाग पर हमला कर देते हैं। जिन्हें काबू करना आपके बस में नहीं रहता क्योंकि उस समय ग्लानि के कारण आप काफी कमज़ोर महसूस कर रहे होते हैं। इससे छुटकारा पाने का यही तरीका है कि आप अपनी बीती गलतियों को ना दोहराने का वादा खुद से करें और अपनी उन भूलों से सीख लेकर आगे बढ़ने का लगातार प्रयास करें। वर्तमान की चिंता – इसे इंसानी प्रवृति कहा जाए या ज़्यादा विवेक होने का नुकसान? अन्य जीवों की तुलना में, इंसानों में ज़्यादा विवेक होता है और सोचने समझने की शक्ति भी अधिक होती है। जिसका फ़ायदा हर इंसान अपने हर कदम पर उठाता भी है लेकिन यही विवेकशीलता उसकी राह का रोड़ा बन जाती है। जब वो सामान्य स्थिति को भी गहराई से सोचता चला जाता है जबकि इसकी कोई आवश्यकता ही नहीं।
प्रकृति बिना किसी प्रयोजन के कोई कार्य नहीं करती। वह सिर्फ सभी जीवों को पूर्णता की और अग्रसर करती ही रहती है दूख व नकारात्मक विचारों के द्वारा। कोई संतुष्ट रह कर प्रकृति के संकेत को अन सुना कर साधू की तरह एक जगह बैठा रह सकता है या कमी को पूर्ण कर सकता है। यह मेरा निजी विचार है। उस बिंदु। विषय की कमी पूर्ण करने के प्रयास का प्रकृति की सूचना है। उसने सूचना देदी। मान लिया और कार्य कर लिया तो पूर्णता की और अग्रसर, नहीं माने तो दूख।अपूर्णता तो चलती ही रहेगी व अवसर भी गंवा देंगे। बाद में सिर्फ पछतावा।
दिमाग में आने वाले विचार दो तरह के होते हैं, सकारात्मक विचार जो आपको आनंद और ऊर्जा से भर देते हैं और नकारात्मक विचार जो आपको निराशा और तनाव के समंदर में डूबो देते हैं। अनेक प्रयासों के बाद भी आप अपने दिमाग में आने वाले इन विपरीत विचारों को रोकने में सफ़ल नहीं हो पाते हैं और इसके चलते आपकी निराशा और तनाव और भी ज़्यादा गहरे होते जाते हैं। रिसर्च बताते हैं कि रोज़ाना हमारे दिमाग में आने वाले विचारों की संख्या करीब 60,000 होती है और इनमें से 70-80% नकारात्मक विचार ही होते हैं जो हमारे जीवन को विपरीत तरीके से प्रभावित करते हैं और हम इनसे अनजान, अपने जीवन की मुश्किलों का ज़िम्मेदार भाग्य को मान लेते हैं। जबकि इसके लिए जिम्मेदारी तो हमारे दिमाग की है और अपने दिमाग के विचारों को संयमित करना हमारे अपने हाथ में है।
आजकल की भाग दौड़ भरी जिंदगी में हम सब व्यस्त होते जा रहे हैं | अधिक काम की वजह से अधिक सोचने लगे हैं | अधिक सोचना गलत नही है | लेकिन जरूरत से ज्यादा सोचना ( over thinking) गलत है | एनोनिमस का कहना है कि इससे हमारे दिमाग पर कंट्रोल नही रहता और कई तरह के और भी नुकसान उठाने पड़ते हैं | अगर आप फ्री हैं तो दोस्तों से मिले या उन्हें बुलाले लेकिन ज्यादा देर तक अकेला ना रहें अकेला इंसान खुद से बातें करने लगता है और जल्दी ही लाइफ के नेगेटिव पहलू देखने लगता है | इसलिए वट्सऐप या फेसबुक पर रहने की बजाए दोस्तो से मिले और थोड़े सामाजिक बनें |